Maitri Sandesh, Sindhuli, 2012
सिन्धुली देशना
सत्य धर्म र गुरुको अनुशरण गर्दै बर्तमान युग समयमा यहाँ उपस्थित अनुपस्थित समस्त पुण्यवान आत्माहरुलाई मैत्रिमंगल गर्दै, लोक् कल्याण एवं प्राणीधानको यस महामैत्री मार्गमा रही आत्मा,शरिर र वचन गुरुको साक्षि भई शाश्वत् धर्मको उद्घोष गरिरहेको छु ।
शाश्वत श्वास भएको अजर, अमर अविनाशी तत्वलाई बोध गर्नको निम्ति चित्तमा मात्र एक सुर धर्मलाई लिएर जीवनचर्य गर्नु पर्दछ ।
धर्म शब्द फेरी पनि आफैमा पर्याप्त छैन ।
कसरी धर्म मात्र एउटा शब्दमा अटाउन सक्छ जुन धर्म तत्वमा समस्त लोकहरु अईको छ ।
धर्म कुनै बुझ्ने तथ्य नभएर बोध गर्ने सत्य हो ।
मनुस्यहरु मात्र नभै चराचर जगतप्राणी एवं वनस्पतिहरुसँग समागममा रहि दया, करुणा, प्रेम, मैत्रीभाव स्थापित गर्न सके, मैत्रीभावको रस सेवन गर्नसके, अपुर्व मैत्रीभाव्मा जीवनचर्य गर्न सकिन्छ । फलरवरुप उपरान्त मूक्ति र मोक्ष प्राप्ति हुनेछ ।
धर्म के नाममा प्राणी हत्या, रीद्धी, चमत्कर देखउनु, तन्त्र-मन्त्र गर्नु मात्र क्षेणिक स्वार्थपुर्तिको बाटो हो । धर्म मात्र त्यो हो जस्ले प्राणीलाई भेदभावरहित कर्म अनुरुप मूक्ति र मोक्षको मार्ग प्रदान गर्छ ।
परापूर्व कालदेखि लोकमा मनुष्यहरू भवसागरमा रुमल्लिएर तत्वहिन वस्तु र मार्गमा तत्वरुपी मनुष्य चोला लिएर कल्पैं देखि जान-अन्ज़ान्मा भौतारिरहेको छ ।
धन्य ती पुण्यवान आत्माहरु जो कि शरणमा रहि सत्यमार्गको अनुशरण गरिरहेकोछ । एवं गुरु स्वयं पनि पूर्ववत् हजारौँ बुद्धहरुभन्दा उच्च गुरुहरुको धर्म, शाशनमा रहिआएको छ ।
भावि दिनहरुमा गुरु र धर्मको दर्शन गराउँदै जानेछु र सदा गराईरहेको छु ।
असंख्या भाव जसमा रुमल्लिएर तृष्णावश सचित गरेको कर्महरुको निवारण गर्नको निम्ति धर्मको शरणमा रहि शुद्ध चित्तको भावना गर्दै अखण्ड रुपले किन्चित पनि विमूख नभई गुरुमार्गमा लागीपर्नु पर्दछ ।
म र मेरो भन्ने लोभ र अहंकार निभाउने ममतालाई त्यागेर सर्वप्राणी लोक्को निम्ति अनश्रव भावना गर्दै जीवनयापन रेमा मात्र मनुष्य जीवन सफल हुनेछ ।
अन्तत: लोकमा आउनुको उईश्य के हो, खोज कुन तत्व हो, सम्पूर्ण अस्तित्व लगायत आफू स्वयंप्रतिको दायित्व र धर्म के हो, आत्मा, अनात्मा, परमात्मा बीचको सेतुहरु के हन् यस्ता असिम र सुखासम अन्तर खोजमा जीवनको कालचक्र ब्यतित गर्नुपर्दछ नाकि क्षणिक विलासिता र भौतिक बन्धनहरू मात्र।
अन्तत: भेदभाव रहित एक प्राणी, एक जगत, एक धर्म एवं मैत्रिभव स्थापित गर्दै लोकलाई धर्मध्वोनीमा अलंकृत गर्न र विश्वभरिको असंख्य व्यकुल प्राणीहरुलाई मैत्रीरस दिई तृप्त गराउदै मार्ग दर्शन गराउन आउने समयमा गुरुभ्रमण हुने नै छ।
गुरु सत्य छ, किनकी गुरु धर्ममा छ । मात्र गल्ति एउतै भौतिक संसारमा गुरुबाट धर्मको शासन विस्तार भएको छ । तथापि जे छ छ्दैछ, सत्य छ ।
सर्व मंगलम्
अस्तू तथास्तु ॥
सिन्धुली देशना
(महा सम्बोधि धर्म संघ गुरूज्यू द्वारा २०६८ भादू २५, २६ और २७ सिन्धुली में हुई विश्वशान्ती मैत्री पुजा के अवसर पर दी गई मैत्री धर्म देशना। (१० सैप्तम्बर, २०१२)
सत्य धर्म ओर गुरु का अनुसरण करते हुए बर्तमान युग समय मे यहाँ उपस्थित अनुपस्थित समस्त पुण्यवान आत्माओं को मैत्री मंगल करते हुए, लोक् कल्याण एवं प्राणीधान के इस महा मैत्री मार्ग पर रहकर आत्मा, शरिर ओर वचन गुरु के साक्षी होकर शाश्वत् धर्म का उद्घोष कर रहा हूं।
शाश्वत श्वास होकर अजर, अमर अविनाशी तत्व के बोद्ध करने के निमित्त चित्त मे मात्र एक सुर धर्म को लेकर जीवन चर्या करनी पड़ती है।
धर्म शब्द फिर भी अपने आप मे पर्याप्त नही है।
कैसे धर्म मात्र एक शब्द मे समाहित हो सकता है जिस धर्म तत्व मे समस्त लोक आते है।
धर्म कोई पता लगाने वाला तथ्य न होकर बोद्ध करने वाला सत्य है।
मनुस्यों के साथ ही नहीं मात्र, चराचर जगतप्राणी एवं वनस्पतियों के साथ समागम मे रहकर दया, करुणा, प्रेम, मैत्री भाव स्थापित कर सकने पर, मैत्रीभाव के रस का सेवन कर सकने पर, अपुर्व मैत्री भाव मे जीवन चर्या की जा सकती है। फलरवरुप उपरान्त मुक्ति ओर मोक्ष प्राप्ति होती है।
धर्म के नाम मे प्राणी हत्या, रीद्धी, चमत्कार दिखाना, तन्त्र-मन्त्र करना मात्र क्षणिक स्वार्थपुर्ति के रास्ते हैं। धर्म मात्र वो है जो प्राणी को भेदभाव रहित कर्म अनुरुप मुक्ति ओर मोक्ष का मार्ग प्रदान करता है।
परापूर्व काल से लोक मे मनुष्य भवसागर मे रुल कर तत्वहिन वस्तु ओर मार्ग पर तत्वरुपी मनुष्य चोला लिए कल्पों से जाने-अन्ज़ाने भटक रहा है।
धन्य है वो पुण्यवान आत्माऐं जो कि शरण मे रहकर सत्यमार्ग का अनुसरण कर रही है। एवं गुरु स्वयं भी पूर्ववत् हजारौँ बुद्धों से उच्च गुरुओं के धर्म शासन मे रहते आएं है।
भावि दिनों मे गुरु ओर धर्म के दर्शन कराता रहूंगा ओर सदा करा रहा हूं।
असंख्य भाव जस मे रुल कर तृष्णावश संचित किये हुए कर्मो के निवारण करने के निमित्त धर्म के शरण मे रहकर शुद्ध चित्त की भावना करते हुए अखण्ड रुप से किन्चित भी विमूख न होकर गुरुमार्ग मे लगना पड़ता है।
मै ओर मेरा जैसे लोभ ओर अहंकार निभाने वाली ममता को त्याग कर सर्व प्राणी लोक के निमित्त अनश्रव भाव के साथ जीवन यापन करने पर ही मात्र मनुष्य जीवन सफल होता है।
अन्तत: लोक मे आने का उद्देश्य क्या है, खोज कौन से तत्व की है, सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ साथ अपनी स्वयं प्रति दायित्व ओर धर्म क्या है, आत्मा अनात्मा परमात्मा बीच के सेतु क्या है, एसे असीम ओर सुखासम अन्तर खोज मे जीवन का कालचक्र व्यतित करना पड़ता है नाकि क्षणिक विलासिता ओर भौतिक बन्धनों मात्र।
अन्तत: भेदभाव रहित एक प्राणी, एक जगत, एक धर्म एवं मैत्रिभाव स्थापित करते हुए लोक को धर्म ध्वनी मे अलंकृत करने के लिए ओर विश्वभर के असंख्य व्याकुल प्राणीयों को मैत्री रस देकर तृप्त कराते हुए मार्ग दर्शन कराने के लिए आने वाले समय मे गुरु भ्रमण होना ही है।
गुरु सत्य है, क्योंकि गुरु धर्म मे है। मात्र गल्ति एक ही है, भौतिक संसार मे गुरु से धर्मको शासन विस्तार हुआ है। तथापि जो है यही है, सत्य है।
सर्व मंगलम्
अस्तू तथास्तु ॥
Sindhuli Speech by Maha Sambodhi Dharma Sangha Gurujiu
Greeting Maitri Mangalam to all virtuous Atmas present or absent from this place at this present Guru moment, I, following the Satya Dharma and Guru, am proclaiming Shashwat Dharma (Eternal Dharma) remaining on the great Maitri Path which seeks to bring overall welfare of the Loka and benefit of the living beings, keeping Atma body and speech in front of Guru as witness.
To actualize the eternal breath which is non-decaying, immortal and indestructible Tattwa, one has to lead a life single-mindedly centred on Dharma. Even then the word Dharma is not complete within itself. How is it possible to limit Dharma Tattwa, which encompasses all the Lokas in just one word? Dharma is not a fact to know but the Truth to be actualized.
Not just with the humans, rather living in togetherness with all movable and immovable living beings and vegetation, on having established kindness, compassion, love, Maitri Bhaava (Feeling of Loving Kindness), having feasted on the divine sap of Maitri Bhaava (Feeling of Loving Kindness), one can lead his or her life in unprecedented Maitri Bhaava (Feeling of Loving Kindness). As a result, then one attains Mukti (Atma getting liberation from the bondages with the body after death) and Moksha (Liberation from the cycle of births and deaths for forever after death of the physical body).
To kill living beings, to show Riddhi Chamatkar (accomplished magics) and to do Tantra Mantra (black magic) in the name of Dharma are merely the ways to achieve one’s selfish ends. Only that One qualifies to be called Dharma which provides Mukti and Moksha Marga without discrimination in accordance with the Karmas.
From the far ancient times, humans, getting lost in this worldly ocean (Bhavsagar) for the Tattwa-less things and marga, are wandering bewildered knowingly unknowingly, even after being in a Tattwa-rupi Manushya Chaula (in a human cloth or body that can help actualize the Truth).
Blessed are those virtuous Atmas who are following Satya Marga remaining under the refuge. And Guru Himself has remained under the Dharma Order (Shashan) of even greater Buddhas than thousands of Buddhas in the past. In the coming days, I will keep revealing Guru and Dharma and this I have been doing always.
In order to find a solution to the Karma fruits accumulated under the influence of unfulfilled desires for having gone astray (from the Dharma Path), one has to engross himself/herself on the Guru Marga remaining under the refuge of Dharma, keeping a pure Chitta (Mind), not getting dissuaded from the Path even the least.
Human life is successful only when it is led with an unwavering intention to help all living beings of the world, forsaking ‘I and my’ endorsing selfish and egotistic attachments.
Finally, what is the objective of coming to the world? For which Tattwa the search has to be taken up? What are the duties and Dharma (obligations) for the entire existence including self? What are the bridges between Atma, Anatma, and Parmatma? In such infinite and Sukha (Happiness) providing internal searches, time-cycle (Kaalchakra) of life should be spent, not just in momentary luxury and material bondages.
Eventually, to ornate the Loka in the sound of Dharma establishing one unified living beings, unified world, unified Dharma and Maitri Bhaava (Feeling of Loving Kindness), and to show the Path to the innumerable restless living beings satiating them with the sap of Maitri (Loving Kindness), Guru is to surely take up the journey in the coming time. Guru is the Truth because Guru is on Dharma. Only mistake is that the spread of Dharma has been taken up by Guru in the material world. Even then, this is what is, this is the Truth.
Sarva Mangalam!
Astu Tatha-astu!