Maitri Sandesh, Patharkot, 2013
धर्म संघ
बोधि श्रवण गुरु संघाय
नमो मैत्री सर्व धर्म संघाय
महा मैत्रीय मार्गको अनुसरण गरि मार्ग गुरु, गुरु मार्ग हुँदै भगवान मार्ग सम्मको असंख्य भाव दर्शनमा लिनभई समस्त प्राणि लोकले महा बोधको अमृतपान गरुन एवं महा मैत्रीय गुरु र मार्गको लोकमा सदा आशिस रही रहुन्।
ताराहरू असंख्य देखिएता पनि आकास एउटै भए जस्तै संसारमा देखिएको समस्त धर्म र मार्गको मूल स्त्रोत अन्तत: एउटै हो। त्यो हो बोध। लोकको विभिन्न काल खण्डमा बोध भएको वा बोध प्राप्त भएको गुरुहरूबाट समय अनुकुल लोक कल्याणको निमित्त भनि प्रतिपादित मार्गहरु वर्तमान क्षणमा विभिन्न धर्म दर्शन मार्ग र संस्कृतिको रंगमा रंगिएको छ। धर्म र मार्गको नाममा झन् झन् सत्य तत्वबाट विमुख हुँदै सहि गलत पाप धर्म गुरु र मार्ग छुट्याउन नसकेर हो वा नचाहेर अनायसै मनुष्यहरू अन्धकारमय तत्व-हिन दिशा तिर देखि रहेको छु।
पूर्ववत एक भाव गरि बोध प्राप्त गर्नु भएको बुद्ध केवल मार्ग इंगित गराउनु हुने मार्ग गुरु हुन्। तथापी वर्तमान क्षणमा पूर्ववत बुद्धको गुरु छैन भन्ने भ्रम लोकमा भएता पनि यस मार्ग गुरुको गुरु को हुनुहुन्छ भन्ने प्रश्न र वास्तविकता यथेष्ट छदैछ। आस्तित्वमा आशिन अनेकौं भावहरू गुरुहरू मार्गहरू अझै लोकमा रहस्य नै छ। समयको अत्यान्तिक अनुरुप गुरु मार्ग दर्शन गराइरहेको छु।
समस्त गुरुहरुको एउटै मार्ग भएता पनि आ-आफ्नो शासन र स्थान हुने गर्दछ तथा शासन अनुरुप फल प्राप्ति हुने गर्दछ। गुरु मार्ग त्यो मार्ग हो जुन मार्गमा समस्त लोक प्राणि र वनस्पतिले मैत्री मार्ग अनुसरण गरि मुक्ति र मोक्ष प्राप्ति गर्दछ। मानव लोकमा मनुष्यहरु स्वतन्त्र छन् धर्मको मार्गमा लिन हौस् या पाप चर्यमा जीवन व्यतित गरोस्। यस लोकको अर्थ नै धर्म र पाप छुट्याउनु हो। तर मनुस्य आफुले गरेको राम्रो नराम्रो कर्म अनुरुप फल सुनिश्चित छ। युगौ पछि लोकमा गुरु मार्गको अवतरण भएको छ। समजदारी अहिंसा दया करुणा प्रेम तथा मैत्री भावको रसले व्याकुल लोकलाई तृप्त गरे मैत्रीको शासन स्थापित गराउनको निमित्त।
तर सर्वज्ञानको भावना राख्ने मनुष्यले अहंकारवस वर्तमान यस गुरु क्षणको सद उपयोग गर्न सकेन। एक क्षण आत्मालाई साक्षी राखी मानवकुलले भावना गरोस गुरुको यो तपस चार्य किन ? अन्तत केवल लोक प्राणी र वनस्पतिको मुक्ति र मोक्षको निमित्त तथापी होला। कसैले गुरुबाट अन्य संसारिक वस्तुको लाभ हुन्छ भन्ने आसय बोकेको तर गुरुले दिन सक्ने मात्र धर्म मार्ग मुक्ति र मोक्ष हो। तर विडम्वना भनौया काल अदित देखि संक्रमित मनुस्यको मनोवृत्ति बदलामा गुरुलाई दीइन्छ आरोप अविश्वास हिंसा वाधा अड्चना।
यस मानव कुलको समाज र व्यवस्था लगायत समस्त लोकलाई धर्म र मार्गको आवश्यकता पर्दछ, नाकी धर्मलाई। मनुस्यहरुले यो सत्य वोध गरुन् एवं मैत्री भाव तत्वको खोजमा जीवन यापन गरुन्। सत्य मार्गको लोक व्यापी दर्शन गराउनको निमित्त आउने दिनहरु गुरु भ्रमण पनि हुनेनै छ।
सर्व मैत्री मंगलम
अस्तु तथास्तु।।
महा सम्बोधी धर्म संघ गुरु ज्यू द्वारा मिति २०६९ साल चैत्र २७ को पत्थरकोट-१, सर्लाही मे दिया गया मैत्री सन्देश। (अप्रैल 9, 2013)
धर्म संघ
बोधी श्रवण गुरु संघाय
नमो मैत्री सर्व धर्म संघाय
महा मैत्रीय मार्ग का अनुसरण करके मार्ग गुरु, गुरु मार्ग होते हुए भगवान मार्ग तक के असंख्य भाव दर्शन मे लीन रहकर समस्त प्राणी-लोक महा बोध का अमृत पान करें एवं महा मैत्रेय गुरु ओर मार्ग का लोक पर सदा आशीष बना रहे।
जैसे असंख्य तारे दिखाई देने पर भी आकाश एक ही है, संसार मे दिखने वाले समस्त धर्म ओर मार्ग का मूल स्त्रोत अन्तत: एक ही है। यह है बोध। लोक के विभिन्न काल खण्ड मे बोद्ध हुए या बोद्ध प्राप्त हुए गुरुओं से समय अनुकूल लोक कल्याण के निमित्त प्रतिपादित मार्ग वर्तमान क्षण मे विविध धर्म दर्शन मार्ग ओर संस्कृति के रंग मे रंगे हुए है। धर्म ओर मार्ग के नाम पर धीरे धीरे सत्य तत्व से विमुख होकर सही गलत पाप धर्म गुरु ओर मार्ग न पहचान सकने व न चाहते हुए भी अनायास ही मनुष्य को अन्धकारमय तत्व-हीन दिशा की ओर जाते हुए मैं देख रहा हूं।
पूर्ववत एक भाव होकर बोद्ध प्राप्त करने वाले बुद्ध केवल मार्ग इंगित कराने वाले मार्ग-गुरु है, तथापी वर्तमान क्षण मे पूर्ववत बुद्ध के गुरु नही है जैसे भ्रम लोक मे होकर भी इस मार्ग-गुरु के गुरु कौन है जैसे प्रश्न ओर वास्तविकता यथेष्ट ही है। अस्तित्व मे आसीन अनेकों भाव गुरु मार्ग अब भी लोक मे रहस्य ही हैं। समय की अत्यान्तिकता अनुरुप गुरु मार्ग दर्शन करा रहा हूं।
समस्त गुरुओं का एक ही मार्ग होते हुए भी अपना अपना शासन ओर स्थान होता है, तथा शासन अनुरुप फल प्राप्ति होती है। गुरु मार्ग वो मार्ग है जिस मार्ग मे समस्त लोक प्राणी ओर वनस्पति मैत्री मार्ग का अनुसरण करके मुक्ति ओर मोक्ष प्राप्त करते हैं। मानव लोक मे मनुष्य स्वतन्त्र है, धर्म के मार्ग मे लीन हो या पाप चर्या मे जीवन व्यतित करे। इस लोक का अर्थ ही धर्म ओर पाप को अलग अलग करके पहचानना है। पर मनुष्य के खुद से किये अच्छे बुरे कर्म अनुरुप फल सुनिश्चित हैं। युगों पश्चात लोक मे गुरु मार्ग का अवतरण हुआ है, समझदारी अहिंसा दया करुणा प्रेम तथा मैत्री भाव के रस से व्याकुल-लोक को तृप्त करके मैत्री के शासन को स्थापित करने के निमित्त।
पर सर्वज्ञान की भावना रखने वाला मनुष्य अहंकारवश वर्तमान इस गुरु क्षण का सद् उपयोग नहीँ कर पा रहा। एक क्षण आत्मा को साक्षी रखकर मानव-कुल भावना करे कि गुरु की यह तपस चर्या क्यों? अन्तत: केवल लोक प्राणी ओर वनस्पती के मुक्ति ओर मोक्ष के निमित तो तथापी है। कोई गुरू से अन्य संसारिक वस्तु के लाभ जैसी आशा रखे है पर गुरु के पास दे सकने मात्र धर्म मार्ग मुक्ति ओर मोक्ष हैं। पर विडंबना देखिए अनादी काल से संक्रमित मनुष्य की मनोवृत्ति बदले मे गुरु को देती है आरोप अविश्वास हिंसा बाधा अड़चना।
इस मानव कुल के समाज ओर व्यवस्था के साथ साथ समस्त लोक को धर्म ओर मार्ग की आवश्यकता पड़ती है, नाकी धर्म को। मनुष्य ये सत्य बोध करें एवं मैत्री भाव तत्व की खोज मे जीवन यापन करें। सत्य मार्ग का लोक व्यापी दर्शन कराने के निमित्त आने वाले दिनो मे गुरु भ्रमण भी होना ही है।
सर्व मैत्री मंगलम
अस्तु तथास्तु।।
Patharkot Speech by Maha Sambodhi Dharma Sangha Gurujiu (April 9, 2013)
“Dharma Sangha
Bodhi Shrawan Guru Sanghaya
Namo Maitri Sarva Dharma Sanghaya!
May all the living beings of the Loka taste the nectar of Great Knowledge (Maha Bodhh) by following Maha Maitri Dharma, remaining engrossed in innumerable Bhaav Darshan (Guidance on different aspects of Dharma) of ‘Guru Marga’, ‘Marga Guru’ and Bhaav Darshan up to ‘Bhagwan Marga’, and may the Loka always enjoy refuge and blessings of Maitriya Guru and Marga!
As the sky is same even if there are innumerable stars, in the same way the original source of all Dharmas and Margas (Spiritual Paths) after all is one. This has been learnt/known. The Paths propounded by Gurus who gained Knowledge Themselves or received Knowledge (from other Gurus) in different time periods for the overall welfare of the Loka appropriate to the time are coloured at present in various Dharma philosophies and cultures. I am seeing the human beings, even unwillingly, going towards a dark Tattwa-less (where there is no Truth) direction just like that for not being able to recognize right-wrong, Dharma-adharma, sin, Guru and Marga (Path) because of their drifting slowly away from the Satya Dharma Tattwa and Marga.
Buddha Who in the past attained spiritual Knowledge (Boddha), sticking to single-minded Bhaav, was a “Marga Guru” only to indicate towards the Path (to follow). Even though at present there is a misconception that this “Marga Guru” did not have a Guru, yet the reality of this question Who His Guru was remains exactly the same. Many Gurus, Margas and Aspects in existence are still a mystery to the Loka. In accordance with the extreme need of the time, I am providing ‘Guru Marga’ Darshan (Guidance).
Even though all the Gurus have the same Path, yet They have Their own order (Shashan) and place, and in accordance with the order (Shashan) fruits are received. Guru Marga’ is that Path following which all living beings of the world and vegetation attain Mukti and Moksha. Humans in the Loka are free whether to absorb themselves in Dharma Path or spend their life in routine sinful actions (Paapcharya). The meaning of this world in itself is to be able to recognize Dharma and adharma separately. But what type of fruits would a human reap is ensured in accordance with good or bad karma.
Guru-Marga has descended in the Loka after many Yugas to establish Maitri Shashan (Order) by gratifying this restless world with the sap of right sense, non violence, compassion, love and Maitri Bhaav (sense of Loving Kindness). But the human considering himself/herself omniscient is not able to take benefit from this present Guru moment due to his/her ego.
Think just for a moment through your honest Atma what the purpose of Guru’s Tapasya-charya (Tapasya routine) is. Eventually, it is only for the Mukti and Moksha of all the living beings and vegetation. Some people are keeping expectations to get some worldly material benefit from Guru but Guru can give Dharma Path, Mukti and Moksha only.
But see the irony! The thoughts and intentions of human beings corrupted for a very long time repay Guru with accusations, disbelief, violence, hurdles. It is the society of whole human family and their arrangement along with all the Loka that needs Dharma and Marga (Spiritual Path), not vice versa. May humans realize this Truth and spend their life in the pursuit of Maitri Bhaav Tattwa (Loving Kindness)! In the coming days, a tour all over the world by Guru to show Satya Marga (Path of Truth) will also surely take place.
Sarva Maitri Mangalam!
Astu Tatha-astu!”
(Tattwa in physical terms means elements and Tattwa in spiritual terms means Truth, essence, or something which has been or should be fully attained through spiritual gains. Thus, the meaning of Tattwa in a sentence has to be contextually understood)