Maitri Sandesh, Lamjung
नेपाली लमजुङ्ग देशना
मिति: २०७० फाल्गुण १० गते ।
लमजुङ्ग खुदी- १
धर्म संघ
बोधि श्रवण गुरु संघाय
नमो मैत्री सर्व धर्म संघाय
महामैत्री मार्ग गुरु, गुरुमार्ग र भगवान मार्गको अनुसरण गरि विस्मृत भाव लिई अवगमन गर्ने समस्त संघ मित्रता धर्म प्रेमी अनुयायीहरुलाई मैत्री मंगल गर्दै, वर्तमान यस गुरुक्षणको स्मृति सँगै सन्तापित सबै आत्माहरुले महा मैत्री धर्मको मार्गमा शितलताको बोध गरुन । धर्म मात्र एक तत्व हो, जसको धरातलमा टेकेर परात्मासँग साक्षत हुने अवसर पाउँदछ ।
एवं भाव रहित दिशाहिन बाँया समान भौतारी रहेको आत्माहरुले महा मैत्रीको मंगलनाद श्रवण गरी यथा सिघ्र बन्धन मुक्त होउन् ।
प्यासको अत्यान्तिक अनुरुप पानीको मोल भए झै दया, करुणा, अहिंसा, श्रद्धा, आस्था भक्ति, विस्वास र मार्ग प्रतिको अटल मानव जिवनमा धर्मको मोल हुने गर्दछ ।
धर्ममा प्रवेश हुनु भनेको मुक्ति र मोक्षको मार्गमा लिन हुनु हो ।
जुन मार्गमा मुक्ति र मोक्ष रुपि तत्व हुदैन, सत्यधर्ममा त्यसलाई कहिले पनि मार्ग भनी स्वीकार्न सकिदैन एवं धर्म खण्डित संस्कृतिमा नभएर आत्मा र परात्मा बिचको सेतु मैत्री ज्ञानको परिपूर्णतामा उपलब्ध हुँदछ ।
मनुस्यले मैत्रीज्ञानबाट टाढा रहि जस्तो सुकै अभ्यास गरे पनि सत्य तत्वको प्राप्ती असम्भव छ ।
क्षणिक संसारमा लाभ भएको देखिएता पनि अन्ततः सबै व्यर्थ ठहरिनेछ ।
असंख्य प्राणिहरुको जीवनचक्र र अवगमन समस्त लोकहरुको व्यवस्था एवं आत्मा, अनात्मा र परात्मा बिचको अखण्डता हो ।
धर्म सूर्य उदाउनु र अस्ताउनु, आकाशमा जून तारा चम्कनु, प्रकृतिमा फुल फुल्नु हो ।
धर्म अन्ततः अघोर दुःख स्वप्नबाट विऊझिएर वास्तविकतामा आफूलाई सकुशल पाएझै यस अनित्य संसारको क्षण भंगुरता बोध गर्नु हो ।
धर्म कुसल विचार र बुद्धिमता भएको मनुस्यले के गुण छ ? धर्ममा वस्तु धर्मले के गर्छ ? भनी प्रश्न गर्नु भन्दा संसारिक वस्तुको वास्ना र बन्धनहरुले मनुस्य आफुलाई के दिएको छ भन्ने प्रश्नको खोज किन गर्दैन?
मनुस्य आफूले अनुसरण गरेको मार्गले मुक्ति र मोक्ष रुपी तत्व समेटेको छ वा छैन भन्ने विषय मनुस्यको आफ्नो नितान्त ब्यक्तिगत अन्तर् खोज हो ।
गुरुले धर्म पुरा गर्छ । लोकलाई मार्ग दिएर, तर मार्गमा यात्रा मनुस्य स्वयंमले गर्नु पर्दछ ।
गुरुबाट मार्ग दृष्टि भईरहँदा मार्गमा यात्रा गर्ने आत्माहरुले संचित गरेको पुण्य र अन्यकर्म अनुरुप पाउनु पर्ने तत्व र भोग्नु पर्ने सत्य सुनिश्चित हुने गर्दछ ।
मार्गमा विविध दुमाफहरु आउनु भनेको स्वभाविक भएता पनि तात्विक विषय अन्तत गुरु मार्ग प्रतिको श्रद्धा र विश्वास हो ।
होस रहिरहोस् धर्म तत्वको अनमोल रत्नहरुले भरिपूर्ण यस महा मैत्री मार्ग सर्वज्ञानको महा वोधले पूर्ण छ ।
तथापी मनुस्यहरुले रित्तो शब्दको भण्डारण गर्नु पूर्व आफ्नो जिवनमा प्रयोग वा गुरुमार्गको अनुसरण गरे सिघ्रनै मार्ग तत्वको वोध हुनेछ ।
धर्तिमा टेकेर आकाशको आशनमा अडिनु मनुस्य चोलामा रहेर पनि मैत्री तत्वको वोध सँगै परात्माको विशद स्वरुपको दर्शन पाउनु आफुलगायत समस्त लोकको रहस्य वोध हुनु, चित्तको असंख्य भाव सागरहरुबाट पानीसरह वास्विभुत भई खुला आकाशमा मुक्त हुनु हो ।
सर्व धर्म र गुरु ज्ञान भन्दा उच्च गुणका तत्वहरुलाई प्रदान गरी विश्वभर पूर्वि भ्रमित अस्तित्व लोप गराउने योग्यतालाईनै मैत्री धर्म भनेको हो । तथानुसार सर्व धर्मको पूर्वी अस्तित्व सबै मैत्री धर्मको मार्गमानै ससिम हुन्छ ।
मैत्रीय मार्ग मनुस्यले जीवनको अन्तिम क्षणसम्म धर्मको सत्य अभ्यास गरे मात्र धर्म लाभ गर्दछ ।
यस मैत्री सन्देशका साथ सम्पूर्ण विश्व मानव भित्रको क्लेशलाई मुक्त गर्न मैत्रीय ११ (एघार) वटा शीलहरु दिइरहेको छु ।
नाम, रुप, वर्ण, वर्ग, आस्था, समुदाय, शक्ति, पद्, योग्यता आदिको आधारमा भेदभाव कहिल्यै नगर्नु तथा भौतिक, आध्यात्मिक भन्ने मतभेदहरु त्याग्नु ।
शाश्वत धर्म, मार्ग र गुरुको पहिचान गरि सर्व धर्म र आस्थाको सम्मान गर्नु ।
असत्य, आरोप, प्रत्यारोप, अवमुल्यन तथा अस्तित्वहिन वचन गरेर भ्रम फैलाउनु त्याग्नु ।
भेदभाव तथा मतभेदको सिमांकन गर्ने दर्शन वा बाटोलाई त्यागी सत्य मार्ग अपनाउनु ।
जीवन रहुन्जेल सत्य गुरुमार्गको अनुसरण गरी पाप कर्महरु त्यागी गुरु तत्वको समागममा सदा लीन रहनु ।
आफूले प्राप्ती नगरेको तत्वलाई शब्दजालको व्याख्याले सिद्ध गर्न नखोज्नु तथा भ्रममा रहेर अरुलाई भ्रमित नपार्नु ।
प्राणी हत्या, हिंसा जस्ता दानवीय आचरण त्यागी सम्यक आहार गर्नु ।
राष्ट्रिय पहिचानको आधारमा मानिस वा राष्ट्र प्रति संकीर्ण सोच नराख्नु ।
सत्य गुरु मार्गको अनुशरण गर्दै आफु लगायत विश्वलाई लाभान्वित गर्ने कर्म गर्नु ।
सत्यलाई उपलब्ध भई गुरु मार्ग रुपलिई समस्त जगत प्राणीको निमित्त तत्व प्राप्त गर्नु ।
चित्तको उच्चतम र गहनतम अवस्थामा रहेर अनेकौं शीलहरुको आत्मा वोध गरी सम्पूर्ण बन्धनबाट मुक्त हुनु ।
यो मैत्रिय ११ (एघार) वटा शीलहरु सँगै सबै संघहरुले आत्मसाथ गरी आफू लगायत समस्त प्राणीहरुको उद्धार गर्नु यस सत्य मार्ग ज्ञानलाई साराले वोध गरुन् ।
संसारिक वस्तु नाम, यश, कीर्तिको पछि अहंकार वश नरुमल्लिएर सदा आत्मामा मैत्री भाव राख्दै, परात्माको स्मृतिमा त्वष्ट रहि रहनु हो ।
लोकमा सत्य धर्मलाई पुनः अनुष्ठान गर्न युगौंको अन्तरालमा गुरु मार्गको अवतरण भएको छ ।
यस स्वर्णिम क्षणको वोध प्राणी एवं वनस्पतिले गरेझै दिन मनुष्यहरुले पनि क्लेश रहित हुँदै यस महा मैत्री मार्गमा यथासय धर्म लाभ गरुन् ।
सर्व मैत्री मंगलम् ।।
अस्तु तथास्तु ।।।
लमजुङ्ग देशना हिन्दी
मिति: २०७० फाल्गुण १०
लमजुङ्ग खुदी- १
धर्म संघ
बोधि श्रवण गुरु संघाय
नमो मैत्री सर्व धर्म संघाय
महा मैत्री मार्ग गुरु, गुरु मार्ग ओर भगवान मार्ग का अनुसरण करके विस्मृत भाव लेकर अवगमन करने वाले समस्त संघ मित्र धर्म प्रेमी अनुयायियों को मैत्री मंगलम करके, वर्तमान गुरु क्षण की स्मृति के साथ सन्तापित सभी आत्माएं महा मैत्री धर्म के मार्ग पर शीतलता का बोद्ध करें।
धर्म ही केवल ऐसा तत्व है जिसके धरातल पर टिके रहकर परमात्मा के साक्षात दर्शन पाने का अवसर प्राप्त होता है एवं भाव रहित दिशाहिन हवा समान भटक रही आत्माऐं महा मैत्री का मंगल नाद श्रवण करके यथा शीघ्र बंधन मुक्त हो।
जैसे प्यास की आत्यान्तिकता अनुरुप पानी का मोल होता है उसी प्रकार दया करुणा अहिंसा श्रद्धा आस्था भक्ति विश्वास ओर मार्ग के प्रति अटलता से मानव जीवन मे धर्म का मोल होता है।
धर्म मे प्रवेश होने का मतलब मुक्ति ओर मोक्ष के मार्ग मे लीन होना है।
जिस मार्ग मे मुक्ति ओर मोक्ष रुपी तत्व नही होते, सत्य धर्म मे उसे कभी भी मार्ग कहना स्विकार्य नही किया जा सकता। एवं धर्म खण्डित संस्कृति मे ना होकर आत्मा ओर परमात्मा बिच के सेतु मैत्री ज्ञान की परिपूर्णता मे उपलब्ध होता है।
मनुष्य मैत्री ज्ञान से दूर रहकर कोई भी अभ्यास करले, सत्य तत्व की प्राप्ति असंभव है।
क्षणिक संसार मे लाभ दिखाई देने वाले भी अन्तत: सभी व्यर्थ रह जाएंगे।
असंख्य प्राणियों का जीवन चक्र ओर अवगमन, समस्त लोकों की व्यवस्था, एवं आत्मा अनात्मा ओर परात्मा बीच की अखण्डता है।
धर्म सूर्य का उदय ओर अस्त होना, आकाश मे चांद तारों का चमकना, प्रकृति मे फूल का खिलना है।
धर्म अन्तत: अघोर दुस्वपन को समझ कर वास्तविकता मे अपने आप को सकुशल पाने जैसे ही इस अनित्य संसार की क्षण भंगुरता का बोध करना है।
धर्म कुशल विचार ओर बुद्धिमान मनुष्य के क्या गुण है, धर्म मे वस्तु धर्म क्या करता है जैसे प्रश्न करने से अच्छा संसारिक वस्तु की वासना ओर बन्धनो से मनुष्य ने अपने आप को क्या दिया है ऐसे प्रश्नो की खोजं क्यों नहीं करता?
मनुष्य के खुद से अनुसरण किये मार्ग मुक्ति ओर मोक्ष रुपी तत्व रखता है या नहीं जैसे विषय मनुष्य की अपनी नितांत व्यक्तिगत अन्तर खोज है।
गुरु धर्म पूरा करते है लोक को मार्ग देकर पर मार्ग पर यात्रा मनुष्य को स्वयं करनी पड़ती है।
गुरु से मार्ग दृष्टि रहे हुए मार्ग पर यात्रा करने वाली आत्माओं के संचित किए हुए पुण्य ओर अन्य कर्म अनुरुप पाने वाले तत्व ओर भोगने पड़ने वाले सत्य सुनिष्चित होंगे।
मार्ग मे विवीध कठिनाईयां आना ऐसा स्वाभाविक होने पर भी तात्विक विषय अन्तत: गुरु मार्ग के प्रति श्रद्धा ओर विश्वास है।
होश रखिए, धर्म तत्व के अनमोल रत्नों से भरिपूर्ण यह महा मैत्री मार्ग सर्वज्ञान के महा बोद्ध से पूर्ण है।
तथापी मनुष्य रिक्त शब्दों का भण्डारन करने से पूर्व अपने जीवन मे प्रयोग व गुरु मार्ग का अनुसरण करके शिघ्र ही मार्ग तत्व का बोद्ध करते हैं।
धरती मे टिके रहकर आकाश आसन मे अडिग मनुष्य चोले मे रहकर भी मैत्री तत्व के बोध के साथ परमात्मा के विषद (साक्षात स्पष्ट) स्वरूप के दर्शन पाना, अपने साथ समस्त लोक के रहस्य का बोध करना, चित के असंख्य भवसागर से पानी की तरह वश्विभूत होकर खुले आकाश मे मुक्त होना है।
सर्व धर्म ओर गुरु ज्ञान से भी उच्च गुण के तत्वों को प्रदान करके विश्वभर पूर्वी भ्रमित अस्तित्व लोप कराने की योग्यता को ही मैत्री धर्म कहा जाता है। तदनुसार सर्व धर्म का पूर्वी अस्तित्व सभी मैत्री धर्म के मार्ग मे ही सिमटे हुए है।
मैत्रीय मार्ग पर मनुष्य जीवन के अन्तिम क्षण तक धर्म का सत्य अभ्यास करके ही मात्र धर्म लाभ करता है।
इस मैत्री संदेश के साथ सम्पूर्ण विश्व मानव भीतर के क्लेश को मुक्त करने के लिए मैत्रीय ग्यारह शील दे रहा हूं।
नाम रुप वर्ण वर्ग आस्था समुदाय शक्ति पद योग्यता आदि के आधार मे भेदभाव कभी भी न करो तथा भौतिक आध्यात्मिक जैसे मतभेदों का त्याग करो।
शाश्वत धर्म, मार्ग ओर गुरु को पहचान कर सर्व धर्म ओर आस्था का सम्मान करो।
असत्य आरोप-प्रत्यारोप अवमुल्यन तथा अस्तित्वहीन वचन करके भ्रम फैलाना त्यागो।
भेदभाव तथा मतभेद के सिमांकन करने वाले दर्शन व रास्तों को त्याग कर सत्य मार्ग अपनाओ।
जीवित रहने तक सत्य गुरु मार्ग का अनुसरण करके पाप कर्मो को त्याग कर गुरु तत्व के समागम मे सदा लीन रहो।
स्वयं तत्व को प्राप्त किए बिना शब्द जाल की व्याख्या से सिद्ध करके इसे न खोजो तथा भ्रम मे रहकर ओरों को भ्रमित न करो।
प्राणी हत्या हिंसा जैसे दानवीय आचरण त्याग कर सम्यक आहार करो।
राष्ट्रीय पहचान के आधार पर मनुष्य व राष्ट्र प्रति संकीर्ण सोच न रखो।
सत्य गुरु मार्ग का अनुसरण करके स्वयं के साथ साथ विश्व को लाभान्वित करने वाले कर्म करो।
सत्य के गुरु मार्ग रुप लेकर उपलब्ध होने पर समस्त जगत प्राणीयों के नीमित तत्व प्राप्त करो।
चित्त के उच्चतम ओर गहनतम अवस्था मे रहकर अनेकों शील को आत्म बोद्ध करके सम्पूर्ण बन्धनो से मुक्त हो।
इन मैत्रीय ११ (ग्यारह) शील को सभी संघ आत्मसात करके अपने साथ साथ समस्त प्राणीयों के उद्धार करने वाले इस सत्य-मार्ग ज्ञान का सार बोध करें।
संसारिक वस्तु नाम यश कीर्ति के पीछे अहंकार वश न भटक कर सदा आत्मा मे मैत्री भाव रखते हुए परमात्मा की स्मृति मे तठष्ट रहो।
लोक मे सत्य धर्म का पुन: अनुष्ठान करने के लिए युगों के अन्तराल मे गुरु मार्ग का अवतरण हुआ है।
इस स्वर्णिम क्षण का बोध जैसे प्राणी एवं वनस्पति कर रहे हैं वैसे ही मनुष्य भी क्लेश रहित होकर महा मैत्री मार्ग पर यथाशिघ्र धर्म लाभ प्राप्त करें।
सर्व मैत्री मंगलम्
अस्तु तथास्तु ।।