Maitri Sandesh, Chitwan
धर्म देशना चितवन – नेपाली
(जून ८, २०१३)
धर्म संघ
बोधि श्रवण गुरु संघाय
नमो मैत्री सर्व धर्म संघाय
सत्य धर्म गुरु र मार्गको अनुशरण गर्दै लोकले धर्म तत्वको बोध गरुन्, एवम् मुक्ति र मोक्ष रुपी यस महा मैत्री मार्गको परम ज्ञानले समस्त लोक प्राणीहरु तृप्त होऊन ।
धर्म तत्वको विज्ञान अति गहन र असिम छ ।
साधारण तथा तत्व वोध हुनको निम्ति स्वयम तत्वरुपी हुन पर्दछ ।
तथा धर्म तत्व केवल यस लोकमा मात्र सिमित नभई समस्त अस्तित्वमा रहेको छ ।
मनुष्यहरुले बोध गरुन यो लोक मात्र एउटा अवसर हो ।
तत्व वोध गर्नको निमित्त कुनै वृक्षमा असंख्य फुलहरु अंकुरित भएपनि सिमितले मात्र फलको स्वरुप प्राप्त गरे झै मनुष्यहरुले धर्म प्राप्त गर्दछ ।
तथापि सत्य धर्मको मार्गमा झरेको फुलहरुको पनि अस्तित्व र महत्व छ ।
एवं प्रत्येक फलहरुको छुट्टै विशेषता र धर्म गुण हुने गर्दछ ।
सत्य धर्मको अनुसरण गर्नु एवं धर्मतत्व प्राप्ति गरि मुक्ति र मोक्षमा लिन हुनुनै मनुष्य लोक र जिवनको मुल उद्देश्य हो ।
गुरुले आफ्नो धर्म पुरा गर्छ ।
संसारलाइ मार्ग दिएर तथापि मार्गमा बढ्ने प्रत्येक पाइलाहरुको जिम्मेवारी मनुष्य आफैको स्व व्यक्तिगत खोज हो ।
मुक्ति र मोक्षरुपी तत्व आफुले अनुसरण गरेको मार्गमा छ वा छैन भन्ने विषय पनि मनुष्यको अर्को नितान्त व्यक्तिगत खोज हो ।
मनुष्यले आफ्नो जिवनमा मैत्री ज्ञानबाट टाढा रहि धर्मको नाममा जस्तो सुकै अभ्यास गरेपनि अस्तित्वगत सत्यतत्वको प्राप्ति असम्भव छ ।
एवं जुन मार्गमा मुक्ति र मोक्ष रुपी तत्व हुदैन त्यसलाई मार्ग भन्न कहिले पनि सकिदैन ।
त्यो केवल क्षणिक संसारको भोग मात्र हुनेछ ।
संसारिक मार्गहरुमा मनुष्यहरुको अहंकार एवं वस्नाहरुलाई यथावत राख्ने अनेकौं सुक्क्षम उपायहरु भएको हुँदा वस्नारुपी मनुष्यहरु सत्य गुरु र मार्गबाट टाढिएको हो ।
जुन मार्गले अहंकार र वस्नाहरुलाई अंगिकार गर्दैन त्यस मार्गमा मनुष्यहरु हिड्न चाहँदैन ।
तर विडम्बना चित्तको अन्तरस्करणमा वोध प्रत्येक मनुष्यलाई छ कुन मार्गले कहाँ पुर्याउँछ ।
गुरुबाट मार्ग दर्शन हुँदा मार्गमा यात्रा गर्ने प्रत्येक आत्माको संचित पुण्य अनुरुप पाउनु पर्ने तत्व र भोग्नु पर्ने सत्य सुनिश्चित छ ।
तथापि होस, रहिरहोस, यात्रा आफ्नै हो ।
अहंकार र वस्नाहरुको दोष वोध गर्दे धर्म तत्वको गुणले परियुक्त भईसंसारबाट मुक्त हुन सकिन्छ जसको निमित्त मनुष्यले जिवनको अन्तिम क्षणसम्म धर्मको स्तंत प्रयास गरिरहनु पर्दछ ।
यस मैत्री मार्ग ज्ञानलाई सारा लोकले आत्मा साथ गर्दै वोध गरुन ।
सर्व मैत्री मंगलम अस्तु, तथस्तु ।।
चितवन देशना हिन्दी
धर्म संघ
बोधि श्रवण गुरू संघाय
नमो मैत्री सर्व धर्म संघाय
सत्य धर्म गुरु ओर मार्ग का अनुसरण करते हुए लोक धर्म तत्व का बोध करे, एवं मुक्ति ओर मोक्ष रुपी इस महा मैत्री मार्ग के परम ज्ञान से समस्त लोक प्राणी तृप्त हों।
धर्म तत्व का विज्ञान अति गहन ओर असीम है।
तत्व बोद्ध होने के निमित्त स्वयं तत्वरुपी होना पड़ता है।
तथा धर्म तत्व केवल इस लोक मे मात्र सिमित न रहकर समस्त अस्तित्व मे रहता है।
मनुष्यों के लिए बोद्ध करने का ये लोक मात्र ही एक अवसर है।
तत्व वोद्ध करने के निमित्त किसी वृक्ष मे असंख्य फूल अंकुरित होने पर भी सिमित मात्र फल का स्वरुप प्राप्त करते है, ऐसे ही मनुष्य धर्म प्राप्त करते हैं।
तथापि सत्य धर्म के मार्ग मे झरे हुए फुलों का भी अस्तित्व ओर महत्व है।
एवं प्रत्येक फलों की अलग विशेषता ओर धर्म गुण हुआ करते हैं।
सत्य धर्म का अनुसरण करना एवं धर्म तत्व की प्राप्ति करके मुक्ति ओर मोक्ष मे लीन होना ही मनुष्य लोक ओर जीवन का मूल उद्देश्य है।
गुरु अपना धर्म पुरा करता है
संसार को मार्ग देकर, तथापि मार्ग मे बढने वाले प्रत्येक कदम की जिम्मेवारी मनुष्य की अपनी ही स्व व्यक्तिगत खोज है।
मुक्ति ओर मोक्ष रुपी तत्व खुद से अनुसरण किए हुए मार्ग मे है या नही है जैसे विषय भी मनुष्य की अलग नितांत व्यक्तिगत खोज है।
मनुष्य द्वारा अपने जीवन मे मैत्री ज्ञान से दूर रहकर धर्म के नाम मे कोई भी अभ्यास करने पर भी अस्तित्वगत सत्य तत्व की प्राप्ति असम्भव है।
एवं जिस मार्ग मे मुक्ति ओर मोक्ष रुपी तत्व नही होते उसको कभी भी मार्ग नही कहा जा सकता।
वो केवल क्षणिक संसार के भोग मात्र होते हैं।
??
जो मार्ग अहंकार ओर वस्नाओं को अंगिकार नहीं करता उस मार्ग पर मनुष्य चलना नहीं चाहते।
विडम्बना है चित्त के अन्त:स्करण मे बोद्ध प्रत्येक मनुष्य को है कौन मार्ग कहाँ ले जाता है।
गुरु से मार्ग दर्शन हुए मार्ग पर यात्रा करने वाली प्रत्येक आत्मा के संचित पुण्य अनुरुप मिलने वाले तत्व ओर भोगने पड़ने वाले सत्य सुनिश्चित है।
तथापि होश रखें, यात्रा अपनी ही है।
अहंकार ओर वस्नाओं के दोष बोद्ध करके धर्म तत्व के गुण से परियुक्त होकर संसार से मुक्त हुआ जा सकता है जिसके निमित्त मनुष्य को जीवन के अन्तिम क्षण तक धर्म का सतत प्रयास करते रहना पड़ता है।
इस मैत्री मार्ग ज्ञान का सार लोक आत्मसात करके बोद्ध करे।”
सर्व मैत्री मंगलम अस्तु, तथस्तु ।।
Chitwan Speech by Maha Sambodhi Dharma Sangha Gurujiu
(Tattwa in physical terms means elements and Tattwa in spiritual terms means Truth, essence, or something which has been or should be fully attained through spiritual gains. Thus, the meaning of Tattwa in a sentence has to be contextually understood)
“Dharma Sangha
Bodhi Shrawan Guru Sanghaya
Namo Maitri Sarva Dharma Sanghaya
May the Loka know Dharma Tattwa following Satya Dharma Guru and Path, and may all the living beings feel gratified with the supreme Gyaan (Spiritual Knowledge) of great Maitri Marga (Path of Loving Kindness) which provides Mukti and Moksha.
Science of Dharma Tattwa is very deep and limitless. To attain Satya Dharma Tattwa, one has to himself/herself become Tattwa like. And the Dharma Tattwa is just not confined to this Loka alone, rather it is present in whole existence. For human beings to attain Dharma Tattwa, this Loka is the only opportunity.
To gain Tattwa, as only a limited fruit buds on a tree take the shape of a fruit, in the same way humans receive Dharma. Even then, the fallen buds also have their existence and importance. And each fruit has its own speciality and Dharma attributes.
To follow the Satya Dharma and to get absorbed in Mukti and Moksha having gained Dharma Tattwa is the root purpose of human Loka and life. Guru accomplishes His Dharma by giving Path to the world, however, the accountability of each step taken on the Path is one’s own.
Whether the path one is following has the Mukti and Moksha providing Tattwas or not is absolutely one’s own internal quest. It is impossible for a human being to attain Tattwa of the Truth in existence if s/he practises anything keeping himself/herself away from Maitri Knowledge. And those paths which do not have the Tattwa providing Mukti and Moksha, they can never be termed as Marga (Spiritual Paths). They are merely meant to gain material benefits of this momentary world.
Human beings don’t want to follow the Path which do not entertain/accept ego and lusts. Irony is in their depth of heart, every human being knows which path leads to where. In accordance with their accumulated Punya (Fruits of Virtuous Actions) and other Karmas by each Atma travelling on the Path directed by Guru, the Tattwas to be attained and truths one will have to bear through are assured/guaranteed. Even then, be aware that the journey is one’s own.
On being equipped with Dharma Tattwa, having known the shortcomings of egotistic attitudes and lustful desires, one can liberate himself/herself from this worldly ocean (Sansaar), for which a person has to indulge in relentless practice of Dharma till the last moment of his/her life. May the Loka embrace and know the substance of this Maitri Marga Gyaan (Knowledge of Maitri Path)!
Sarva Maitri Mangalam!
Astu Tatha-astu!”